हाल ही में, मैंने स्वामी अभयानंद की यह अद्भुत पुस्तक पढ़ी और मैं कह सकती हूँ कि यह सिर्फ एक किताब नहीं है, बल्कि मानव चेतना की गहराई में ले जाने वाला एक प्रामाणिक दस्तावेज है। यह कृति एक यात्रा है—अभय नाम के एक साधारण व्यक्ति से स्वामी अभयानंद तक पहुँचने का सफर—जिसमें संसार, संन्यास और प्रेम जैसे शाश्वत विषयों को बड़ी ही बारीकी और संवेदनशीलता से छुआ गया है।
पुस्तक की सबसे बड़ी शक्ति इसकी ईमानदारी है। लेखक ने अपने व्यक्तिगत संघर्षों, जीवन के भ्रमों और अपनी त्रुटियों को बिना किसी संकोच के पाठक के सामने रखा है। इस निडर प्रस्तुति ने इसे किसी उपदेश से कहीं ऊपर उठाकर एक अत्यंत व्यक्तिगत संवाद का रूप दिया है। जैसे-जैसे मैं पन्ने पलटती गई, ऐसा लगा जैसे मैं किसी अनुभवी दोस्त के साथ बैठी हूँ जो जीवन के सबसे गहरे सबक साझा कर रहा है। उन्होंने बताया है कि कैसे उनके जीवन में ओशो की शिक्षाओं ने अँधेरे से निकलने की रोशनी प्रदान की और कैसे उनके स्वर्गीय पिता की सीख— "जीवन में कुछ भी बनना या न बनना, पर सच का साथ कभी मत छोड़ना"—ने उन्हें हमेशा सच के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया।
यह पुस्तक स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि संन्यास का अर्थ सब कुछ त्यागना नहीं है, बल्कि जीवन को एक सत्यनिष्ठ दृष्टिकोण से जीना है। यह उन सभी पाठकों के लिए एक मार्गदर्शक है जो आंतरिक शांति और उद्देश्य की तलाश में हैं। आज की भाग-दौड़ भरी जिंदगी में, हम सब कहीं न कहीं सुकून और सही दिशा खोज रहे हैं, और यह किताब हमें सिखाती है कि बाहरी दुनिया में उलझे बिना भी हम अपने अंदर आनंद कैसे खोज सकते हैं। यह आपको हिम्मत देती है कि आप अपने जीवन के उतार-चढ़ावों को स्वीकार करें और उन्हें आध्यात्मिक विकास का हिस्सा मानें।
मेरा मानना है कि 'अभय से स्वामी अभयानंद तक' एक अविश्वसनीय और आवश्यक पठन है। अगर आप जीवन के बड़े प्रश्नों (प्रेम का सही अर्थ, आंतरिक शांति और उद्देश्य) के उत्तर चाहते हैं, और एक ऐसी प्रेरणादायक कहानी पढ़ना चाहते हैं जो आपको निराशा से बाहर निकलने का रास्ता दिखाए, तो आपको यह किताब निश्चित रूप से पढ़नी चाहिए। यह किताब मुझे बहुत पसंद आई और मैं इस अद्भुत कृति के लिए लेखक को दिल से धन्यवाद देती हूँ।
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